खजुराहो नृत्य समारोह का हृदयग्राही और ओजपूर्ण समापन
PUBLISHED : Feb 27 , 8:14 AM
खजुराहो नृत्य समारोह का हृदयग्राही और ओजपूर्ण समापन
पर्यटन नगरी में 48वें खजुराहो नृत्य समारोह के आखिरी दिन सुर, लय, ताल, नृत्य, संगीत और रंगों का ऐसा संगम हुआ कि बसंत कब फागुन में बदल गया इसका आभास ही नहीं हुआ। सुखद अहसासों से लबरेज इस रंगीन शाम में भोपाल की श्वेता और क्षमा की जोड़ी से लेकर कथक की जानी मानी हस्ती शमा भाटे ने ऐसे अद्भुत रंग भरे जिसका बखान करना मुश्किल है। आखिरी प्रस्तुति के रूप में सुदूर उत्तर पूर्व भारत के मणिपुरी नर्तकों ने तो कमाल ही कर दिया। इन्हीं प्रस्तुतियों के साथ 48वें खजुराहो नृत्य समारोह का हृदयग्राही समापन हो गया।
अद्भुत रंग अद्भुत नृत्य प्रस्तुति
नृत्य समारोह के आखिरी दिन की पहली प्रस्तुति के रूप में कथक और भरतनाट्यम की जुगलबन्दी पेश की गई। भोपाल की भरतनाटयम नृत्यांगना श्वेता देवेंद्र और कथक नृत्यांगना क्षमा मालवीय ने अपने ग्रुप्स की 14 नृत्यांगनाओं के साथ अद्भुत नृत्य प्रस्तुति दी। दोनों ने नर्मदा जी की स्तुति से शुरुआत की। रागमालिका के तमाम राग़ों को पिरोकर तैयार की गई इस स्तुति के बोल थे-"नमो नर्मदाय निजानंदाय.."। आदि और तीनताल में निबद्ध इस रचना में नर्मदा जी के 10 नामों को भाव नृत से प्रस्तुत किया गया। भाव नृत्य की प्रस्तुति में दोनों नृतिकियों का अद्भुत संगम देखने को मिला। सूरदास के पद "सुंदर श्याम सुंदसर लीला सुंदर बोलत बचन " कथक और भरतनाटयम का सुंदर रूप उभरकर सामने आया। इसी के साथ कथक और भरतनाटयम को एकाकार करते हुए इस प्रस्तुति का समापन हुआ।
देश की जानी मानी नृत्यांगना शमा भाटे के कथक नृत्य की थी। उनके नृत्य संस्थान - "नादरूप " के कलाकारों ने बसंत और फागुन को अपने कथक से खजुराहो के मंच पर साकार किया। "उमंग" नाम की इस प्रस्तुति में बसंत भी था। होली के रंग भी बिखरे और कृष्ण की बंशी के जादू ने तो मादकता के पैमाने तोड़ दिए। दरअसल शमा जी की इस नृत्य रचना में प्रकृति की खूबसूरती के दर्शन होते हैं। तिलंग के स्वरों में कृष्ण की वंदना- "-वसुदेव सुतम ..." पर कलाकारों ने बेहतरीन नृतभाव दिखाए। फिर रथ पर सवार बसन्त का आगमन मन को लुभा गया। "कलियन संग करत रंगरलियां" बसंत और बहार के सुरों और त्रिताल में बंधी इस रचना पर भाव नृत से कलाकारों ने जैसे बसंत को साकार कर दिया। फिर आगे बढ़े तो पहाड़ी के सुरों में होली- " रंग डारूँगी डारूँगी रंग डारूँगी नंद के लालन पे " की प्रस्तुति सभी को रंग बिरंगा कर गई। पटदीप के सुरों में सजी बंदिश - बाजे मुरलिया बाजे- पर बाँसुरी और भीमसेन जोशी दोनों ही साकार हो गए। बंदिश पंडित भीमसेन की आवाज में थी आखिर में तीन ताल में भैरवी की बंदिश-" आज राधा बृज को चली," पर भाव नृत करते हुए तराने के बोलों के साथ खुद को समाहित करते हुए नृत्य का समापन हुआ। दर्शकों को लगा कि सब परिपूर्ण है सब सबरंग है।
मणिपुरी नृत्य समूह 'तपस्या' के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत
नृत्य समारोह का ओजपूर्ण और जोशीला समापन इम्फाल से आये मणिपुरी नृत्य समूह 'तपस्या' के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत मणिपुरी नृत्य से हुआ। नृत्य का आगाज़ नट संकीर्तन से हुआ। यह पूजा का एक रूप है, जो महायज्ञ के रूप में माना जाता है। यह श्रीमद भागवत के सौंदर्य तत्व को प्रदर्शित करता है। मणिपुरी शैली में नर्तकों ने पुंग और करताल के साथ मंद अभिनय और नृत्य संगीत के साथ इसे पेश किया।