तीन तलाक: हाईकोर्ट ने कहा, संंविधान से ऊपर नहीं कोई भी पर्सनल लॉ
PUBLISHED : May 09 , 9:02 PM
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक और फतवे पर अहम टिप्पणी करते हुए मंगलवार को कहा है कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत सभी नागरिकों को प्राप्त अनुच्छेद 14, 15, 21 के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और जिस समाज में महिलाओं की इज्जत नहीं होती, उन्हें सिविलाइज्ड (सभ्य) नहीं कहा जा सकता। मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तीन तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीडऩ के मुकदमे की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह अहम टिप्पणी की है।
हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है। लिंग के आधार पर मूल व मानवाधिकारों को हनन नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता, जिससे समानता व जीवन के मूल अधिकार हनन होता हो। संविधान के दायरे में ही पसर्नल लॉग हो सकता है। ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो। कोई भी फतवा किसी के अधिकारों के विपरीत नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है। फतवे पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो।
हाईकोर्ट ने तीन तलाक से पीडि़त वाराणसी की सुमालिया द्वारा पति अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीडऩ केस को रद्द करने से भी इनकार कर दिया है। यह आदेश जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने अकील जमील की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची अकील जमील का कहना था कि उसने पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है। इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीडऩ का दर्ज मुकदना रद्द होना चाहिए।
कोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आपराधिक केस बनता है। अदालत ने कहा कि यदि अपराध कारित होता हो तो कोर्ट को अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए कार्यवाही रद्द करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है। यदि इसे कोई लागू करता है तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नह०ीं है।