आज से पितृपक्ष शुरू, चंद्र ग्रहण के बीच जानें श्राद्ध व तर्पण का सही तरीका
PUBLISHED : Sep 07 , 9:09 AM
इस बार पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है, जब भाद्रपद पूर्णिमा के साथ ही पूर्ण चंद्र ग्रहण भी लगेगा। वहीं इसका समापन 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या पर होगा, जब सूर्य ग्रहण भी घटित होगा।
पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है और इसे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत पवित्र समय माना जाता है। इन 16 दिनों के दौरान लोग तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मकांड करके पितरों को स्मरण करते हैं।
इस साल पितृपक्ष की शुरुआत के साथ 7 सितंबर को पूर्ण चंद्र ग्रहण लगेगा, जो भारत सहित एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अमेरिका और न्यूजीलैंड तक दिखाई देगा। यह ग्रहण रात 9:57 बजे शुरू होकर 8 सितंबर की रात 1:26 बजे तक चलेगा।
सूतक काल
चंद्र ग्रहण के साथ ही सूतक काल का महत्व भी बढ़ जाता है। यह सूतक 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से शुरू होकर ग्रहण समाप्त होने तक चलेगा। परंपरा के अनुसार, इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड नहीं किए जाते। जिन लोगों का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि पर होता है, उन्हें दोपहर 12:57 बजे से पहले अपने सभी कर्मकांड पूरे कर लेने चाहिए।
हालांकि यह पूर्ण चंद्र ग्रहण है, ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इसका पितृपक्ष की विधियों पर कोई विशेष बाधा नहीं डालेगा। फिर भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण काल में भोजन बनाना, खाना और किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है।
पितरों का तर्पण कब और कैसे करें?
पितृपक्ष में तर्पण का विशेष महत्व माना गया है। यह न सिर्फ पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, बल्कि पितृ दोष से मुक्ति पाने का उपाय भी है। सही समय, स्थान और विधि से किया गया तर्पण पुण्यदायी माना जाता है।
तर्पण का सबसे शुभ समय दोपहर के बाद माना गया है। कुतुप मुहूर्त (सुबह 11:30 से दोपहर 12:30) और रौहिण मुहूर्त (12:30 से 1:30) तर्पण के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं । परंपरा के अनुसार गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करना सबसे शुभ है। यदि नदी किनारे जाना संभव न हो, तो घर पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण किया जा सकता है।
तर्पण करने की विधि►
► सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ सफेद वस्त्र पहनें।
►जनेऊ धारण करने वाले इसे दाहिने कंधे पर रखें।
►एक लोटे में जल भरकर उसमें काले तिल और चावल डालें।
►दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।
►हाथों में कुश की अंगूठी धारण करें।
►अंजलि में जल, तिल और चावल लेकर तीन बार ‘ॐ पितृभ्य: नम:’ मंत्र का उच्चारण करें।
►इसके बाद अपने गोत्र और पितरों का नाम लेते हुए जल भूमि पर अर्पित करें।
तर्पण के बाद गरीबों को भोजन, वस्त्र या धन का दान करना अत्यंत पुण्यकारी है। गाय, कुत्ते और पक्षियों को भोजन खिलाना भी शुभ माना जाता है। ग्रहण काल में घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना लाभकारी माना जाता है। इस दौरान तर्पण, श्राद्ध या पिंडदान करना वर्जित माना गया है। इसलिए इन कर्मकांडों से बचें।
तर्पण करते समय हमेशा शुद्ध जल और काले तिल का ही इस्तेमाल करें। बासी या दूषित चीजें प्रयोग न करें।
श्राद्ध या तर्पण किसी और की भूमि पर न करें। सबसे अच्छा है कि यह अनुष्ठान किसी पवित्र तीर्थ, मंदिर या नदी के तट पर किया जाए।
ग्रहण के समय गर्भवती स्त्रियों को बाहर निकलने से बचना चाहिए, क्योंकि इस अवधि को संवेदनशील माना जाता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए उत्तरदायी नहीं है।